सायें खो गए है दीवारे दोपहर की धूप ढूंढ़ती है
ये मेरा कमरा कही जा भी नहीं सकता,
रह-रहकर किताबो में अपनी कहानी ढूंढ़ता है…
तस्वीरे दरारो और किलो के निशान छिपा-छिपाकर थक गयी है
इन तस्वीरो में दबी यादे,
खिड़कियो से आती हवाओं में अब साँसे ढूंढ़ती है….
सायें खो गए है दीवारें दोपहर की धूप ढूंढ़ती है …
ये आइना, ये स्टडी टेबल और अलमारी में रखे कपडे
रोके बैठे हैं वक़्त को वही का वही,
अब ये उदासी रिहाई का मौका ढूंढ़ती है…
सायें खो गए है दीवारें दोपहर की धूप ढूंढ़ती है …
पर्दो के फरेब में एहसास उलझे-उलझे है
ये एहसास इन पर्दो को सरकाने वाले हाथ ढूंढ़ते
सायें खो गए है दीवारें दोपहर की धूप ढूंढ़ती है …
ये मेरा कमरा कही जा भी नहीं सकता,
रह-रहकर किताबो में अपनी कहानी ढूंढ़ता है…
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