जब सामने तुमहारे माटी का मान हो
चाह बस कि तिरंगे को समार्पित जान हो
जो यज्ञ देशप्रेम और आहूति प्राण हो
जो मातृभूमि ही धर्म और वहीं ईमान हो
ऐसी हर सोच को शत शत प्रणाम हो..
तो कैसे आज ये सवाल मन में मेरे आया
जो देखा देश प्रेम ने, देश ही जलाया
ये हो नहीं सकता मेरी रूह चीखती
अन्याय पर ए वीरों, कैसा कदम उठाया
जिस आवाम का तुम मान हो
जिस जनता का सम्मान हो
विरोध की आंधी में, उन्हीं को ही डराया
अरे... धू धू कर कैसे मातृभूमि को जलाया
जो चाहते तो गाँधी की तरह लड़ते
जो चाहते तो आवाम के दर्द को समझते
समझते की जहाँ आग तुमने है लगाई
किसी की माँ किसी की बेटी, होगी कितनी सहमाई
जिस मन में बस देश और देश का ही ख्वाब हो
उनसे है सवाल ये भूल मेरी माफ़ हो
कि एक अन्याय ने क्या इतना तुम्हें सताया?
आवाम का क्या दोष, तुम्हारे जहन में ना आया
क्या खौफजदा आँखे मासूमों की नज़र न आई?
क्या देश से बढ़ कर अपना ग़ुस्सा तुमने पाया?
तुम शान हो देश की देश का सम्मान हो
तुमसे है ये सवाल भूल मेरी माफ़ हो
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