जानते हो तुम? वो मेरे कमरे के बिस्तर पर पड़ी चादर की सलवटें अब भी यूँ ही रखी हैं, पास के मेज पर वो खुली किताब, वो ऐश ट्रे में तुम्हारी आधी सिगरेट तुम्हारे लबों की छाप वाला चाय का कप सब कुछ वैसा ही है.. फर्क बस इतना सा है.. उस कमरे में अब हमारी हँसी नहीं गूँजती..।।