12 APR 2018 AT 16:25

कभी कभी जब शाम को फुरसत मिल जाया करती है;
वो दिन याद आते हैं जब शाम का इंतज़ार सिर्फ खेलने के लिए होता था;
वो दोस्त, वो गली और वो घंटो तक खेलना;
अब सब खत्म सा लगता है;
अगर आज समय भी है तो दोस्त नही;
समय भी बहुत गज़ब है साहब;
एक उम्र के बाद तो बस झुक सा जाता है;
और दिन-रात में फर्क ही नही करने देता।

- Ankit Jethani