धरती भी अब झुलस के बोले, बस कर दे इन्सान,अपनी माता का आज तू कर ले, थोड़ा सा सम्मान,ऐसा न हो बह निकलें, उसके आँसू बन करके ज्वार,अपने पतन का मंथन कर ले, फिर कर लेना व्यापार,जिस मिट्टी से जीवन मिलता, दे उसको जीवन का दान। - ©अंजुमन
धरती भी अब झुलस के बोले, बस कर दे इन्सान,अपनी माता का आज तू कर ले, थोड़ा सा सम्मान,ऐसा न हो बह निकलें, उसके आँसू बन करके ज्वार,अपने पतन का मंथन कर ले, फिर कर लेना व्यापार,जिस मिट्टी से जीवन मिलता, दे उसको जीवन का दान।
- ©अंजुमन