मै शून्य था वो चेतना, साथ कहाँ आसान था
मेरे अहसासों से भी ऊपर उसका ज्ञान था
हृदय में बसता था मैं, मस्तिष्क पर उसका मान था
मुझसे ऊपर स्थान था उसका, मुझसे ज्यादा सम्मान था
मै शून्य था वो चेतना, साथ कहाँ आसान था
बंद आंखों से निहारता था उसको, चेहरे पढ़ने का उसको अभिमान था
योग में रमता था उसको, पर परिणामों में उसका ध्यान था
मै शून्य था वो चेतना, साथ कहाँ आसान था
ज्ञान प्रकाशित कर उसने एकरोज मुझे झझकोर दिया
भावों के गहरे सागर में बहने से मुझको रोक लिया
पाण्डित्य की प्रबलता थी उसमें, मेरा प्रेम कहाँ महान था
मै शून्य था वो चेतना, साथ कहाँ आसान था
मेरे अहसासों से भी ऊपर उसका ज्ञान था
"सावन"
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