22 JUN 2018 AT 1:01

करना चाहते कया थे
और कर क्या बैठे हम,
जो रिश्ता बनाना चाहते थे
वहीं रिश्ता तोड़ बैठे हम,
मंज़िल-ए-मुस्कान तो दूर हो ही गई
ग़म को हमसफ़र बना बैठे हम।

- Abrar Maniyar