20 APR 2018 AT 7:20

आज उसने पूछ ही लिया मुझसे,
बताओ वजह, जो चुप से हो गए हो इस तरह,

कहूँ क्या उससे,
की अब ज़ज़्बातों को साथ रखना गुनाह है,
दिल की ज़मीं पर उम्मीद लिए फिर नही सकता
मैं,
थोड़े से वक़्त की गुजारिश है उससे, वो समझे अगर तो,
क्या हुआ है मुझे, जान जाएगी शायद वो वक़्त से वक़्त तक,

क्या बताऊँ अब,
की खुद को कब से दबाये रखा है मेने जज़्बातों से,
दास्ताँ-ए-दिल बयाँ करने के लिए तुमसे,
हर बात, अक्षर-ब-अक्षर साथ बताना चाहता हूँ मैं,
अपनी खुशी को उसकी वजह दिखाना चाहता हूँ
मैं,
वो चाँद है, एक तारा बन इबादत करना चाहता हूँ में, ये बताऊँ अब।

क्या समझाऊं उसे,
की जिस बात से वो अनजान है वो बात ही आज मेरी जान है,
यूँ उसकी मुस्कुराहट अब मेरे दिल-ए-सुकून का पैगाम है,
क्यों मैं उसको कुछ बता नही सकता,
जान कर भी कुछ कर न सकेगी, वो अफसोस कर नही सकता,
अब सवाल उसके हैं, जवाब दे तो न पाउँगा मैं,
गुलाब है वो, महक को उसकी यूँ कम न होने
दूँगा मैं,
खुदसे ही समझ गयी तो बेहतर होगा अब मेरे लिए,
किस्से पुराने नही, नए हैं अब सारे,
समझाऊंगा कैसे मैं अब तेरे लिए
सोच ही रहा था मैं और आँख लग गई उसकी,

नही तो फिर पूछ ही लिया था उसने,
बताओ वजह, जो चुप से हो गए हो फिर इस तरह।

- बेआवाज़