मैं तुम से खामोश इश्क़ करता हूँ,
हूँ 'बेआवाज़', तभी कहने से डरता हूँ,
ये लगाव मेरा, तुम समझो या न समझो,
बस नासमझ सी दिल्लगी है, जो करता हूँ,
कोशिश की कई दफ़ा, हाल-ए-दिल बताने की,
बहाने से, तुमको देख कर छू जाने की,
साथ रहने की उम्मीद लगाने की,
ज़िन्दगी के बाकी रहे वो पल, साथ जी जाने की,
एक उम्र गुज़ारी है तुम ने, मैं ने, इस जहाँ में,
ख्वाहिश है, तुम को इस जहाँ से जाँ तक बनाने की,
ख्वाब जो अधूरे रहे हैं, मेरे, तुम्हारे, शायद,
हाथ में हाथ थाम कर, पूरा कर जाने की,
इतनी ही तमन्ना रोज़ करता हूँ, खुद से,
अपने से पहले रखूँ तुमको, सामने हूँ जब भी खुदा से,
फिर हर दफ़ा, सारी सारी बातें तुमको बतलाना चाहता हूँ,
ये ज़िन्दगी मेरी, तुम से, हमारी होते हुए देखना चाहता हूँ,
फिर भी, इस अनकहे रिश्ते को खोने से डरता हूँ,
यही है इसलिए, जो मैं, इश्क तुम से, खामोशी से करता हूँ।
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