Abhishek Dave   (बेआवाज़)
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Words can speak🎼, just write to compose them and they sound magically🎧🎶
#mr_unvoiced
Joined 20 September 2017


Words can speak🎼, just write to compose them and they sound magically🎧🎶
#mr_unvoiced
Joined 20 September 2017
11 NOV 2020 AT 18:52

शुरुआत हुई जब डगमग डगमग,
चलेगा फिर भी पगपग पगपग,

छीनती क़िस्मत जब तब जब तब,
माँगना फिर तू हक़ सब हक़ सब,
दिशा विहीन हो जब कल जब कल,
रास्ते बनाना तू हर पल हर पल,
मंज़िलों पे हों आँखे डट कर डट कर,
चलेगा फिर भी पगपग पगपग,

होंसला गिरे तो डर मत डर मत,
उठाना खुद को हिम्मत रख हिम्मत रख,
वक्त बदलेगा कोशिश कर कोशिश कर,
साथ ना छोड़ना जीवन भर जीवन भर,
पथरीले से रस्ते हर पग हर पग,
चल चला चल पगपग पगपग,

शुरुआत तो कोई अंत नहीं जब,
चलते फिर जाना पगपग पगपग।

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21 SEP 2020 AT 13:52

ये दुनिया एक नक़ाबों का शहर है,
यहाँ हर कोई एक नक़ाब है,
फिर कर रहें हैं क्यूँ,
एक दूज़े को ये बेनक़ाब हैं,
ना चल रहे हैं ठीक से,
ना बढ़ रहें हैं जीत ने,
नज़र रखे हुए हैं सब,
एक दूज़े की ही हार पे,
की जो हार है, निराश है,
वो उनकी ख़ुशी का राज है,
ना सोचना समझना जब,
इनका ना कोई काम क़ाज है,
काम जो मेरा है मैं तो बस उसी को देखता,
लड़ रहा झगड़ रहा मैं अपना कर्म सींचता,
फिर इनको क्यूँ नहीं है कोई चैन अपने आप से,
पड़े हुए हैं सब के सब एक दूसरे की ही मात से,
है मतलब तभी ही आएँगे ये कोई ना कोई बात से,
ना है मतलब यूँ फिर इन्हें तो कोई दिन से या रात से,
ख़ुदगर्ज़ ये हैं मैं नहीं, हूँ खुद्दार मैं अपने आप में,
लिख रहा मैं सब का सब हिसाब इक किताब में,
खुल गयी जो रोज़ वो किताब इस हिसाब से,
बेनक़ाब होंगे सब के सब वक़्त के बेहिसाब से,
बड़बोले है सभी कभी जो सोचते नहीं है ये,
की दिखती है वो भी हरकतें जो बोलते नहीं कभी,
हैं आइने के सामने पर खुद को ये न देखते,
अपनी हार पे बस अपना ही नसीब फेंकते,
ये दुनिया एक नक़ाब है नक़ाब ही ना ओढ़ लो,
झूठ ओर फ़रेब छोड़ थोड़ा सच भी बोल दो।

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10 MAY 2020 AT 23:38

तेरी मम्मी, मेरी अम्मी, सबकी मम्मी एक हैं,
है ईश्वर, हो या अल्लाह, मानो तो सब एक हैं

दूर रहूँ या पास रहूँ, दिल तो उसका एक है,
एक रहे या हों अनेक पर, राजा बेटा एक है,

जीवन की इस भागदौड़ में, तुमको जितना मोह है,
एक शाम करो घर आने में देर, तो फिर उसकी भागदौड़ एक है,

बढ़ती उम्र में भी वो रखती ध्यान तुम्हारा एक है,
उसकी ममता के साये में ये दुनिया सच्ची एक है,

ख़ुशक़िस्मत हैं वो, जिनके सर पर माँ का हाथ है,
क्या ढूँढते हो तुम प्यार, जहाँ में उसका दुलार फिर एक है,

न माँग रही, न चाहती कुछ वो, उसका संसार तुम्हीं से एक है,
ख़्याल करो उसका, एक नहीं हर दिन सब, क्योंकि,
“माँ” हमारी वो एक है।
“माँ” हमारी वो एक है।

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12 DEC 2019 AT 21:48

न रुकना है अभी, न थमना है अभी,
इस दुनिया में, सत्कर्म करना है अभी,
न हार का हुआ, न जीत का होना है कभी,
लगता रहे सदा, बस चलना है अभी,

न रहूँ मैं आगे, न कोई पीछे हो कभी,
अंधेरा हो कहीं तब याद रहे, जलना है जभी,
सदाचार से, आदर्श से सम्भलना हो कहीं,
प्रार्थी ही रहूँ सदा, चाहे प्रार्थना पूरी हो या नही,

आकाश छूना हो, या सागर पार जाना हो जभी,
स्मरण हो विलय से पहले, जीवन में तरना है अभी,
रहे विश्वास या न हो स्वयं से ‘बेआवाज़’, पर कहना है हमेशा,
बस चलना है अभी,
बस चलना है अभी।

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7 DEC 2019 AT 17:17

मैं अपने आप को ही अब अपना मान के चल रहा हूँ,
कुछ जीतने के लिए बहुत कुछ हार के चल रहा हूँ,

किस्मत तो सब की अपनी ही होती है, मगर,
मैं कर्मों से अपनी उम्मीद लगा कर के चल रहा हूँ,

मुश्किल रास्तों से अपनी मंजिल के लिए लड़ रहा हूँ,
मैं भी अब अपनी बारी के लिए अड़ रहा हूँ,

अंधेरा होगा या उजाला, मैं तो जल रहा हूँ,
सूरज से पहले अपने सवेरे की और बढ़ रहा हूँ,

बस अब चंद अरमान लिए ही तो चल रहा हूँ,
ज़िन्दगी जीतने के लिए, मैं खुद को ही हारते हुए चल रहा हूँ।

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23 NOV 2019 AT 3:35

मैं आज, इस पल का हूँ या उस कल का रहूँ,
इतनी दूर हूँ सब से, बस अपना तो रहूँ,

यहाँ कौन से लोग हैं, जो मुझे जानते हैं,
ख्वाहिश है बस, सबके पहले खुद का तो रहूँ,

हार का हुआ मैं या जीत का रहूँ,
ज़िन्दगी न रुके कभी, बस चलता ही रहूँ,

न जाने क्या क्या देखना है अपने कल में मुझे,
सच और झूठ के फरेब में, अपनी नज़र का तो रहूँ,

ये दिल्लगी हो सच्ची या फिर न रहे किसी से,
तमन्ना है बस, धड़कन से किसी ग़म का न रहूँ,

मुझे इल्म-ए-फ़ितरत न रहे किसी क़हर-ए-क़यामत का, मुझ पर,
डूब जाऊँ मैं कभी, फिर भी मुद्दत से जो हूँ, 'बेआवाज़' ही रहूँ,

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11 NOV 2019 AT 19:37

मैं तुम से खामोश इश्क़ करता हूँ,
हूँ 'बेआवाज़', तभी कहने से डरता हूँ,
ये लगाव मेरा, तुम समझो या न समझो,
बस नासमझ सी दिल्लगी है, जो करता हूँ,
कोशिश की कई दफ़ा, हाल-ए-दिल बताने की,
बहाने से, तुमको देख कर छू जाने की,
साथ रहने की उम्मीद लगाने की,
ज़िन्दगी के बाकी रहे वो पल, साथ जी जाने की,
एक उम्र गुज़ारी है तुम ने, मैं ने, इस जहाँ में,
ख्वाहिश है, तुम को इस जहाँ से जाँ तक बनाने की,
ख्वाब जो अधूरे रहे हैं, मेरे, तुम्हारे, शायद,
हाथ में हाथ थाम कर, पूरा कर जाने की,
इतनी ही तमन्ना रोज़ करता हूँ, खुद से,
अपने से पहले रखूँ तुमको, सामने हूँ जब भी खुदा से,
फिर हर दफ़ा, सारी सारी बातें तुमको बतलाना चाहता हूँ,
ये ज़िन्दगी मेरी, तुम से, हमारी होते हुए देखना चाहता हूँ,
फिर भी, इस अनकहे रिश्ते को खोने से डरता हूँ,
यही है इसलिए, जो मैं, इश्क तुम से, खामोशी से करता हूँ।

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29 AUG 2019 AT 0:39

खुद को सुलझा लिया है अब यूँ,
गैरों को रख परे सबको अपना लिया है अब यूँ,
जरूरती इस कदर हो गया हूँ बस,
अपनी ही आँच से खुद को पिघला लिया है अब यूँ,
रूठे हुए रिश्तों को मना लिया है अब यूँ,
नाम नही जिनका, बेनामी से मान लिया है अब यूँ,
खुद को खुद से ही उलझा लिया है अब यूँ,
मुद्दत से जो बंद रखे है, दिल के गहरे राज़ जब यूँ,
खामोशी से ही फिर खुद को,
सुलझा लिया है अब यूँ।

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18 AUG 2019 AT 19:43

आज लगा मुझे,
की मैं इश्क़ का हो सकता हूँ,
पर ये इश्क़, मेरा न हो सका,
दरिया में जो, मैं डूब जाऊँ,
छोटी बूँद बन के न पड़ सका,
कुछ सपने मेरे आगे ही रहे इश्क़ से,
पर ये इश्क़ सपनों का ही रह सका,
आरज़ू क्या ही कर सकता हूँ, मोहब्बत से,
रूह का सुकून भी जब न रह सका,
अपने आप से ही तो अब नाराज़गी, किसी ओर से कैसी,
ये वफ़ा की बारिशों में भी, मेरी इश्क़ की बूँदे कहाँ,
आज बस लगा मुझे,
की, मैं इश्क़ का हो तो सकता हूँ,
पर ये 'बेआवाज़' सा इश्क़ मेरा न हो सका।

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10 AUG 2019 AT 15:47

सवाल करूँ या रूठ जाऊँ,
ऐ इश्क़ तुझसे खफा रहूँ या टूट जाऊँ,
ये बार बार बेवजह मेरे दरवाजे न आया कर,
किसी किसी रूप में मुझको न सताया कर,
ये दुनिया में कोई हीर राँझा रहा नही,
इतना भी न इतराया कर,
जो दिल में धड़क रहा हो, उसे तो चैन से सुलाया कर,
जरूरी नही, की हर सफर में हमसफ़र मिल जाए,
ऐसे सपने रोज़ रोज़ भी न दिखाया कर,
दर्द उठा के देख, कभी मुस्कराहट कम न रखी थी,
ये हर बार जख्म देकर मरहम न लगाया कर,
अब क्या सवाल करूँ, क्या रूठ जाऊँ,
ऐ इश्क़ बता, यूँ "बेआवाज़" रहूँ, या फिर से टूट जाऊँ।

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