21 MAY 2018 AT 2:03

एक ख्वाब को मैंने बेहिसाब होते देखा है,
तो एक नज़र को मैंने समाज होते देखा है,

एक चिंगारी को मैंने राख होते देखा है,
तो एक खाली प्याले को मैंने शबाब होते देखा है,

कहीं नूर देखा है, तो कहीं होते घमंड को चूर देखा है,
और मैं जवान की जवानी की तो बात ही नहीं करता
क्यूंकि आज भी मैंने बुढापे में होते जवानी का गुरुर देखा है।

एक जुबान को मैने खराब होते देखा है
तो आज मैंने बेटों भी को बाप होते देखा है,

आज घरों में Maggi के लिए रोटियां फेंकने पर मैंने विचार होते देखा है,
तो कभी एक रोटी के लिए मैंने उस गरीब बच्चे को लाचार होते देखा है,

मैंने दिन को चढते हुए देखा है, मैंने रात को ढलते हूए देखा है
और आज की सच्चाई है कि मैंने परिवारों को भी घरों में बदलते हुए देखा है।

- Abhishek borse