24 FEB 2018 AT 22:19

माँ तुम्हारा क्या सारांश दूँ,
शब्दों की घोर जटाओं में,
किस क़दर तेरे मुस्कान को लिख पाऊँ,
किस क़दर तेरी आँखों की नमी,
तेरे कोमल हाथों का एहसान,
कुछ शब्दों में लिख पाऊँ,
तेरी उस 'लल्ला' वाली पुकार,
को किस तरह सबको समझाऊँ,
फिर भी अगर वह कुछ शब्द हो,
तो ग़ौर फरमाईयेगा,
"एहसान को भी फ़र्ज़ कह कर निभा गयी,
एहसान को भी, 'फ़र्ज़' कह कर निभा गयी,
छोटी सी जिंदगी पे मुस्कुरा कर,
इतना बड़ा क़र्ज़ लगा गयी ।"

- अभिषेक अग्रवाल

- Abhishek Agarwal